बुलंदशहर. कहा जाता है कि जो इंसान आपदा को अवसर में बदल दे, वही सफलता की सीढ़ियां चढ़ सकता है. इस बात को बुलंदशहर जिले के निसुरखा गांव के संजीव कुमार नामक एक शख्स ने सही साबित करके दिखाया है. संजीव कुमार आज देश में प्राकृतिक खेती के लिए एक जाना-पहचाना नाम बन चुके हैं. उनकी खेती का मॉडल इतना बेहतरीन साबित हुआ कि देश में विकास के लिए नीतियों को बनाने वाली सबसे बड़ी संस्था नीति आयोग को भी उनकी खेती के मॉडल को समझने की कोशिश करने के लिए मजबूर होना पड़ा. जिससे कि देश के किसानों की समस्याओं को दूर करने का कोई उपाय खोजा जा सके.
प्राकृतिक खेती के लिए इतना वैज्ञानिक और लाभदायक मॉडल पेश करने वाले संजीव कुमार का पहला रोजगार खेती नहीं था. लेकिन वक्त जब जिस इंसान से जो करवाना चाहता है, करवा ही लेता है. इस बात को सबसे ज्यादा बेहतर तरीके से संजीव कुमार की कहानी से समझा जा सकता है. संजीव कुमार ने 1990 में आईटीआई किया और ग्रेजुएशन की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर स्वरोजगार के लिए लोहे की फैब्रिकेशन यूनिट डाल दी. उनका रोजगार काफी अच्छा चल गया. उन्होंने आईटीआई किया था और वे अच्छी क्वालिटी के लोहे का सामान बनाकर अपने ग्राहकों को बेचने लगे.
लोहे के दाम आसमान पर पहुंचे तो यूनिट हुई बंद
करीब 15 साल से ज्यादा समय तक संजीव कुमार का काम बहुत अच्छा चलता रहा. लेकिन 2010 में कुछ ऐसा हुआ कि संजीव कुमार की लोहे की फैब्रिकेशन यूनिट बंद हो गई. 2010 में लोहे का भाव 28 रुपये किलो से अचानक बढ़कर 48 रुपये किलो हो गया. इससे संजीव कुमार का कामकाज ठप हो गया. क्योंकि इस दाम पर उन्होंने ग्राहकों से जो ऑर्डर लिए थे, उसकी सप्लाई करना बहुत ही कठिन था. इससे वह दिवालिया हो जाने के कगार पर पहुंच गए थे. उन्होंने बहुत सारे लोगों का एडवांस वापस कर दिया, लेकिन कुछ लोग फिर भी नहीं माने और इस तरह संजीव कुमार को अपनी यूनिट बंद करनी पड़ी.
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पिता ने किया परिवार से अलग
संजीव कुमार के लिए समस्याएं केवल यहीं पर ही खत्म नहीं हो गईं. जब उनके परिवार को इस बात की सूचना मिली कि संजीव कुमार ने अपने लोहे का कारोबार बंद कर दिया है तो उनके पिता ने अपनी पुश्तैनी 6 एकड़ जमीन के तीन हिस्से किए. 2 एकड़ जमीन अपने पास रखी, 2 एकड़ संजीव कुमार के छोटे भाई को दी और 2 एकड़ जमीन संजीव कुमार को देकर उनको परिवार से अलग कर दिया. जिससे कि वह अपना खर्चा खुद उठाएं. संजीव कुमार उनके ऊपर बोझ न बन जाएं, इस डर से उनके पिता ने उनको घर से अलग कर दिया.
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परंपरागत खेती में उठाया घाटा
संजीव कुमार ने पहले साल तो परंपरागत खेती की. लेकिन उन्हें कुछ मुनाफा नहीं मिला. उसके बाद 2011 में संजीव कुमार ने जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाया. दो-तीन साल तक जैविक खेती करने के बाद भी उन्होंने जितनी मेहनत की, उसकी तुलना में कुछ खास लाभ नहीं हुआ. जबकि जैविक खेती में मेहनत बहुत लगती थी. संजीव कुमार दिन भर वर्मी कंपोस्ट बनाने में लगे रहते थे. इसके लिए वे केंचुओं पर पानी छिड़कते, खेतों में लगातार सिंचाई करते और जैविक खाद डालते रहते.
‘प्राकृतिक खेती’ से निकला रास्ता
संजीव कुमार ने 2013 में सहारनपुर के देवबंद के पास भाला गांव में सुभाष पालेकर का 5 दिन का ‘जीरो बजट खेती’ का शिविर अटैंड किया. जिसे आज ‘सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती’ कहा जाता है. संजीव कुमार का कहना है कि उनके लिए वहीं से रास्ता निकला. संजीव कुमार जैविक खेती में जितनी मेहनत करते थे, उसका नतीजा उनको कुछ खास दिखता नहीं था. इसके बाद जब उन्होंने सुभाष पालेकर नेचुरल फार्मिंग को अपनाया, तो उसके नतीजे उनके हिसाब से बहुत ही चमत्कारिक आए. उन्होंने एक ही खेत में गन्ना, हल्दी और प्याज की फसल ली. जिससे उन्हें काफी मुनाफा हुआ. उसके बाद उन्होंने देशी गेहूं की किस्म ‘बंसी’ का बीज बोया और उसके भी नतीजे शानदार रहे. प्राकृतिक खेती के अच्छे परिणाम देखने के बाद उन्होंने 2014 में कुरुक्षेत्र 2015 में हरिद्वार में भी सुभाष पालेकर की प्राकृतिक खेती के शिविर में हिस्सा लिया. इसके बाद संजीव कुमार के सामने कई रास्ते खुलते गए.
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प्रोडक्ट बनाकर शुरू की डायरेक्ट मॉर्केटिंग
संजीव कुमार ने अब अपने उत्पाद खुद तैयार करके उनको ग्राहकों को सीधे बेचने के मॉडल पर काम करना शुरू किया. इसके लिए उन्होंने सबसे पहले 2015 में कोल्हू लगवा लिया. उसके बाद उन्होंने गुड़, शक्कर, सिरका, राब बनाना और उसकी डायरेक्ट मार्केटिंग करने का काम शुरू किया. इससे संजीव कुमार को काफी मुनाफा हुआ. खेती में संजीव कुमार की सफलता को देखते हुए उनके पिताजी ने अब अपनी पुश्तैनी जमीन के केवल दो हिस्से कर दिए और 3 एकड़ जमीन संजीव कुमार को दे दी. बाकी 3 एकड़ जमीन उनके छोटे भाई को मिली. इसके अलावा आधा एकड़ जमीन संजीव कुमार ने किराए पर ली है. संजीव कुमार ने पिछले साल केवल इस 3.5 एकड़ जमीन से 7 लाख रुपये की आमदनी की है. जिसमें उनकी कुल लागत केवल एक लाख रुपये है. इस तरह से संजीव कुमार ने 6 लाख रुपये का लाभ कमाया. संजीव कुमार ने एक व्यक्ति को स्थायी रोजगार दिया हुआ है. साल में खेती के मौसमी कामों में और कई लोगों को वे अस्थायी रोजगार देते हैं.
1 एकड़ से 6 लाख की इनकम का मिशन
अब केवल इतने पर ही संजीव कुमार नहीं रुके हैं. उनका इरादा एक एकड़ जमीन से 6 लाख रुपये की आमदनी करने का है. इसके लिए वे एक ऐसे मॉडल पर काम कर रहे हैं, जिसमें एक खेत से साल में 12 फसलें ली जाएंगी. अक्टूबर से उनकी इस योजना का एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू हो गया है. उन्होंने आधा एकड़ में गन्ना के साथ गेहूं, चना, सरसों और मेथी की फसल ले ली है. अब वह पपीता, हल्दी, मिर्च, बैंगन, टमाटर, बोरो और खेत में कहीं भी जरा भी खाली रही जगह पर लोबिया लगा रहे हैं. इस तरह देखा जाए तो 1 साल में एक खेत से संजीव कुमार 12 फसलों का एक ऐसा मॉडल बना रहे हैं, जिससे 1 एकड़ से ही 6 लाख रुपये की आमदनी होगी.
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खेती के औजारों में किया जरूरी सुधार
संजीव कुमार आईटीआई से ट्रेनिंग हासिल कर चुके हैं, इसलिए उन्होंने खेती के काम में प्रयोग होने वाले औजारों में भी कुछ सुधार करके खुद कुछ नए औजार बनाएं हैं. जिससे कि मजदूरों की मेहनत कम हो और किसान की लेबर की लागत कम हो. ये सभी औजार पूरी तरह मैनुअल यानि हाथ से काम करने वाले हैं. उन्होंने 50 से ज्यादा किसानों को इन औजारों को बेचा भी है.
सरकारों ने माना लोहा, मिले कई सम्मान और पुरस्कार
ऐसा नहीं है कि संजीव कुमार का खेती का ये सारा मॉडल केवल उनके मौखिक दावों पर ही आधारित है. खेती के काम में संजीव कुमार के नए नजरिये को सराहते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने 23 दिसंबर 2021 को उनको 75,000 रुपये का पुरस्कार दिया. इसके अलावा 2017 में यूपी के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने संजीव कुमार को आईफा पुरस्कार भी दिया था. उनको 2019 में हिमाचल प्रदेश के कृषि मंत्री रामलाल मारकंडा ने ऊर्जा रत्न अवार्ड भी दिया था. संजीव कुमार के खेती में किए गए काम इतने मशहूर हुए कि नीति आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष राजीव कुमार भी 2020 में उनके फार्म का दौरा करने पहुंचे. 25 अप्रैल 2022 को विज्ञान भवन में प्राकृतिक खेती पर आयोजित एक कार्यशाला में ‘प्राकृतिक खेती की सफलता की कहानियों का सार-संग्रह’ नामक एक पुस्तक का विमोचन हुआ. इसमें संजीव कुमार का भी एक लेख छपा है.
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किसानों को सिखा रहे प्राकृतिक खेती के गुर
संजीव कुमार प्राकृतिक खेती के अपने अनुभव को किसानों के बीच फैलाने के लिए तीन दिन का आवासीय प्रशिक्षण शिविर भी कराते हैं. जिसमें 2 दिन की ट्रेनिंग और 1 दिन का फॉर्म विजिट शामिल होता है. इस तरह संजीव कुमार ने साबित कर दिया है कि आपदा को अवसर में बदला जा सकता है. कम जोत वाली छोटी खेती को भी लाभदायक बनाया जा सकता है. इससे जो किसान कम जमीन होने का रोना दिन-रात रोते हैं, उनके सामने भी एक मॉडल पेश हुआ है. भारत में करीब 84% किसान छोटे और सीमांत की श्रेणी में आते हैं. इसलिए संजीव कुमार का मॉडल और भी उपयोगी हो जाता है. आने वाले समय में अगर इसका सही तरीके से उपयोग और प्रचार किया गया देश में खेती की दिशा बदली जा सकती है.
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FIRST PUBLISHED : May 10, 2022, 15:29 IST